विज्ञान शब्द का जन्म कहा हुआ? सबसे पहले किस भाषा और किस ग्रंथ में इसका उपयोग हुआ?
विज्ञान शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा में ऋग्वेद और अथर्ववेद में हुई थी। यह दुनिया का सबसे प्राचीन ग्रंथ है, जिसमें "विज्ञान" का वैज्ञानिक प्रयोग किया गया है।

स्कूल में अपने विज्ञान के बारे में जरूर पढ़ा होगा. विज्ञान के कुछ प्रकार जैसे भौतिक, रासायनिक और जैविक विज्ञान के बारे में आपने सुना पढ़ भी होगा. क्या आप जानते हैं कि "विज्ञान" शब्द का जन्म कब और कहां हुआ? सबसे पहले विज्ञान शब्द कहां इस्तेमाल किया गया?
यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसका उत्तर बहुत कम लोग जानते हैं। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि सबसे पहले विज्ञान शब्द का उल्लेख किस ग्रंथ में हुआ, इसका अर्थ क्या है, और दूसरी प्राचीन सभ्यताओं में इसके समान शब्दों का प्रयोग हुआ या नहीं।
अगर आप यह जानना चाहते हैं कि विज्ञान शब्द का जन्म कब हुआ, किसने किया, और प्रथम इसका इस्तेमाल कहां किया गया. तो इस आर्टिकल में आपके इन सभी सवालों का जवाब मिलेगा.
इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि दुनिया में सबसे पहले किस सभ्यता में किस भाषा में विज्ञान अथवा उसके समकक्ष शब्दों का इस्तेमाल किया गया.
विज्ञान क्या है?
विज्ञान (Science) एक ऐसी प्रणालीबद्ध ज्ञान की शाखा है, जो प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन, अवलोकन (Observation), प्रयोग (Experiment) और तर्क (Reasoning) के माध्यम से सत्य को खोजने का प्रयास करती है।
विज्ञान को कई सारे प्रकार में बांटा गया है जैसे की भौतिक विज्ञान, रासायनिक विज्ञान, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, जलवायु विज्ञान, सामाजिक विज्ञान( समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र) इत्यादि.
तो यह थी विज्ञान के बारे में छोटी सी व्याख्या. यह सब तो आप अपने स्कूल कॉलेज में पढ़ ही चुके होंगे. अब हम यहां पर मूल विषय पर आते हैं, जो की है कि विज्ञान शब्द की उत्पत्ति कहां हुई, और सबसे पहले किस धर्म सभ्यता देश इत्यादि में, किस ग्रंथ में इसका उल्लेख आया.
सबसे पहले विज्ञान शब्द का प्रयोग कहां हुआ?
विज्ञान शब्द वैदिक संस्कृत भाषा का शब्द है. दुनिया में अब तक प्राप्त हुए ग्रंथो में प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद और अथर्ववेद में "विज्ञान(Vijyana)" शब्द का उपयोग हुआ है.
जब हम विज्ञान शब्द की मूल उत्पत्ति और सर्वप्रथम इसके प्रयोग के बारे में जानना चाहते हैं तो हमें दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रंथो को खंगालना पड़ता है. दुनिया में कई सारे प्राचीन ग्रंथ मौजूद है. परंतु ऋग्वेद, अथर्ववेद और भगवत गीता को छोड़कर के किसी भी ग्रंथ में विज्ञान से मिलता जुलता या फिर विज्ञान जैसा अर्थ रखने वाला कोई भी शब्द नहीं है. सिर्फ ऋग्वेद अथर्ववेद और भागवत गीता में ही विज्ञान शब्द का जिक्र मिलता है और उसका उपयोग भी वैज्ञानिक तथ्यों को बताते हुए ही किया गया है.
ऋग्वेद में विज्ञान शब्द के जिक्र के साथ विज्ञान के मूल सिद्धांतों की भी बात की गई है. जैसे यह लाइन देखिए-
सु विज्ञानं चिकितुषे जनाय सच्चासच्च वचसी पस्पृधाते । तयोर्यत्सत्यं यतरदृजीयस्तदित्सोमोऽवति हन्त्यासत् ॥
शब्दार्थ और भावार्थ:
सु विज्ञानं – उत्तम विज्ञान
चिकितुषे जनाय – जिज्ञासु (खोजी) मनुष्य के लिए
सच्चासच्च वचसी पस्पृधाते – सत्य और असत्य दोनों प्रकार के कथन प्रतिस्पर्धा करते हैं
तयोर्यत्सत्यं यतरदृजीयस्त – इन दोनों में से जो सत्य और श्रेष्ठ तर्कसंगत होता है.
तदित्सोमोऽवति हन्त्यासत् – वही संरक्षित रहता है और असत्य का नाश करता है.
🔹 यह वेद मंत्र विज्ञान के मूल सिद्धांतों को दर्शाता है—जिज्ञासा, प्रयोग (Experimentation), सत्यापन (Verification), और सत्य की विजय (Triumph of Truth)।
🔹 यह बताता है कि विज्ञान हमेशा सत्य की खोज करता है और असत्य का नाश करता है।
🔹 यह मंत्र वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देता है, जो आधुनिक विज्ञान की नींव भी है।
इसके बाद अथर्ववेद में भी विज्ञान शब्द का जिक्र आता है और साथ ही सूर्य और बिजली तथा बादलों का भी वर्णन किया गया.
विद्युत्पुंश्चली स्तनयित्नुर्मागधो विज्ञानं वासोऽहरुष्णीषंरात्री केशा हरितौ प्रवर्तौ कल्मलिर्मणिः ॥
शब्दार्थ:
विद्युत्पुंश्चली – विद्युत (बिजली) को चंचल या गतिशील बताया गया है।
स्तनयित्नु – मेघ गर्जना (Thunder)
मागधो विज्ञानं – मागध का विज्ञान
वासोऽहरुष्णीषं – दिन का वस्त्र सूर्य की किरणें
रात्री केशा – रात्रि के केश अंधकार
हरितौ प्रवर्तौ – धरती जो निरंतर गतिशील हैं (प्रकृति में परिवर्तनशील ऊर्जा)
कल्मलिर्मणिः – रहस्यमय चमकता हुआ बिजली ऊर्जायुक्त तत्व
अर्थ: बिजली चंचल और गतिशील होती है, बादलों की गर्जना के साथ इसका संबंध है। विज्ञान के रूप में यह मूल्यवान है। दिन सूर्य के प्रकाश रूपी वस्त्र पहनता है, जबकि रात्रि के केश अंधकारमय होते हैं। धरती सदा गतिशील हैं, और यह चमकता हुआ तत्व विद्युत ऊर्जा रहस्यमय होता है।
यह मंत्र बिजली, बादलों की गर्जना, दिन-रात्रि के चक्र, और प्राकृतिक ऊर्जा के प्रवाह को दर्शाता है।
यह विद्युत (Electricity) और प्रकृति के चक्रीय परिवर्तन (Day-Night Cycle, Weather Phenomena) को भी बताता है।
"हरितौ प्रवर्तौ" धरती के चलायमान होने की जानकारी देता है।
यह ऋग्वेद मंत्र प्राकृतिक विज्ञान (Physics, Meteorology, और Energy Science) की ओर संकेत करता है।
क्या किसी अन्य धार्मिक सभ्यता में विज्ञान या उसके समान शब्द मौजूद है?
हमने वेदों में विज्ञान शब्द को देखा, अब हम बात करते हैं दुनिया की दूसरी सभ्यताओं और अलग अलग रिलिजियस सभ्यताओं की. क्योंकि दुनिया में जितनी भी प्राचीन पुस्तकें मौजूद हैं उनमें सबसे ज्यादा पुरानी किताबें किसी न किसी धर्म से संबंधित ही है.
अब देखते हैं कि दुनिया की अन्य प्राचीन सभ्यताओं और धार्मिक ग्रंथों में क्या इस प्रकार का कोई शब्द मौजूद था?
ग्रंथ / धर्म | शब्द | अर्थ | विज्ञान से संबंध |
---|---|---|---|
गिलगामेश की कथा | - | - | ❌ नहीं |
यहूदी धर्म (Torah) | Daat | धार्मिक ज्ञान | ❌ नहीं |
ईसाई धर्म (Bible) | Knowledge, Wisdom | आस्था और उपदेश | ❌ नहीं |
बौद्ध धर्म (Tripitaka) | बोध, चेतना | आत्मज्ञान, ध्यान | ❌ नहीं |
इस्लाम (Quran, Hadith) | Ilm | सामान्य ज्ञान | ❌ नहीं |
निष्कर्ष:
🔹 दुनिया की किसी भी प्राचीन सभ्यता में "विज्ञान" शब्द या उसके समान कोई भी शब्द नहीं मिलता।
🔹 केवल ऋग्वेद, अथर्ववेद और भगवद गीता में ही "विज्ञान" शब्द का स्पष्ट वैज्ञानिक उपयोग मिलता है।
दुनिया के अन्य किसी भी मत पंथ संप्रदाय की प्राचीन से प्राचीन पुस्तक में विज्ञान अथवा उसके समान अर्थ रखने वाला कोई भी शब्द नहीं मिलता. इससे यह बात साफ होती है की सबसे पहले विज्ञान शब्द की उत्पत्ति कई हजार साल पहले वेदों की उत्पत्ति के समय ही हो चुकी थी.
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